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उत्तराखण्ड - राज्य निर्माण
4 Oct, 2015
Admin
प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने राज्य गठन के बारे में बद्रीनाथ मे उत्तराखण्ड क्रांति दल के प्रतिनिधि मंडल के साथ ४५ मिनट तक बातचीत की थी, कांग्रेस कभी राज्य गठन की हिमायती नहीं थी वहीं टिहरी नरेश मान्वेन्द्र शाह ने क्षेत्र के पिछडेपन को दूर करने के लिये केन्द्र शासित प्रदेश की मांग की थी। गोविन्द बल््लभ पंत से लेकर नारायण दत्त तिवारी जैसे नेता उत्तराखण्ड राज्य गठन के हिमायती नहीं थे। १९३८ से पहले गोरखो के आक्रमण व उनके द्वारा किये अत्याचारो से अंग्रेजी शासन द्वारा मुक्ति देने व बाद में अंग्रेजो द्वारा भी किये गये शोषण से आहत हो कर उत्तराखण्ड के बुद्धिजीवियो मे इस क्षेत्र के लिये एक पृथक राजनैतिक व प्रशासनिक इकाई गठित करने पर गम्भीरता से सहमति घर बना रही थी। समय-समय पर वे इसकी माँग भी प्रशासन से करते रहे। १९३८ = ५-६ मई, को कांग्रेस के श्रीनगर गढ्वाल सम्मेलन मे क्षेत्र के पिछडेपन को दूर करने के लिये एक पृथक प्रशासनिक व्यवस्था की भी मांग की गई। इस सम्मेलन मे माननीय प्रताप सिह नेगी, जवाहरलाल नेहरू व विजयलक्षमी पन्डित भी उपस्थित थे १९४६ः हल्द्वानी सम्मेलन मे कुर्मान्चल केशरी श्री बद्रीदत्त पान्डेय, श्री पुर्णचन्द्र तिवारी, व गढ्वाल केशरी श्री अनसूया प्रसाद बहुगुणा द्वारा पर्वतीय क्षेत्र के लिये प्रथक प्रशासनिक इकाई गठित करने की मंाग की किन्तु इसे उत्तराखण्ड के निवासी एवम तात्कालिक सन्युक्त प्रान्त के मुख्यमन्त्री गोविन्द बल्लभ पन्त ने अस्वीकार कर दिया। १९५२ः देश की प्रमुख राजनैतिक दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम महासचिव, पी.सी. जोशी ने भारत सरकार से पृथक उत्तराखण्ड राज्य गठन करने का एक ज्ञापन भारत सरकार को सौंपा था। पेशावर काण्ड के नायक व प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी चन्द्र सिह गढ्वाली ने भी प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु के समक्ष पृथक पर्वतीय राज्य की माग का एक ज्ञापन दिया था। वर्ष १९५५ दिनांक २२ मई नई दिल्ली मे पर्वतीय जनविकास समिति की आम सभा सम्पन्न हुई। उत्तराखण्ड क्षेत्र को प्रस्तावित हिमाचल प्रदेश में मिला कर बृहद हिमाचल प्रदेश बनाने की मांग की गयी। वर्ष १९५६ को पृथक हिमाचल प्रदेश बनाने की मांग राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा ठुकराने के बाबजूद गृहमन्त्री गोविन्द बल्लभ पन्त ने अपने बिशेषाधिकारों का प्रयोग करते हुये हिमाचल प्रदेश की मांग को सिद्धांत रूप में स्वीकार कर लिया था किन्तु उत्तराखण्ड के बारे में कुछ नहीं किया। वर्ष १९६६ माह अगस्त में उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र के लोगों ने प्रधानमन्त्री को ज्ञापन भेज कर पृथक उत्तरखण्ड राज्य की मांग की गयी। वर्ष १९६७ दिनांक १०- ११ जून को जगमोहन सिंह नेगी एवम चन्द्र भानू गुप्त की अगुवाई में रामनगर कांग्रेस सम्मेलन में पर्वतीय क्षेत्र के विकास के लिये पृथक प्रशासनिक आयोग का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा गया था। दिनांक २४-२५ जून को पृथक पर्वतीय राज्य प्राप्ति के लिये आठ पर्वतीय जिलों की एक पर्वतीय राज्य परिषद का गठन नैनीताल में किया गया जिसमें दयाकृष्ण पान्डेय अध्यक्ष एवम ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल, गोविन्द सिहं मेहरा आदि शामिल थे। दिनांक १४-१५ अक्टूबरः को दिल्ली में उत्तराखण्ड विकास संगोष्टी का उदघाटन तत्कालिन केन्द्रिय मन्त्री अशोक मेहता द्वारा दिया गया जिसमें सांसद एवम टिहरी नरेश मान्वेन्द्र शाह ने क्षेत्र के पिछडेपन को दूर करने के लिये केन्द्र शासित प्रदेश की मांग की थी। वर्ष १९६८ को लोकसभा में सांसद एवम टिहरी नरेश मान्वेन्द्र शाह के प्रस्ताव के आधार पर योजना आयोग ने पर्वतीय नियोजन प्रकोष्ठ खोला। वर्ष १९७० दिनांक १२ मई तात्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान प्राथमिकता से करने की घोषणा की। वर्ष १९७१ को राजा मान्वेन्द्र शाह, नरेन्द्र सिंह बिष्ट, इन्द्रमणि बडोनी और लक्षमण सिंह जी ने अलग राज्य के लिये कई जगह आन्दोलन किये। वर्ष १९७२ः को श्री ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल एवम पूरण सिंह डंगवाल सहित २१ लोगों ने अलग राज्य की मांग को लेकर बोट क्लब पर गिरपतारी दी। वर्ष १९७३ को पर्वतीय राज्य परिषद का नाम उत्तरखण्ड राज्य परिषद किया गया। सांसद प्रताप सिंह बिष्ट अध्यक्ष, मोहन उप्रेती, नारायण सुंदरियाल सदस्य बने। वर्ष १९७८ को चमोली से बिधायक प्रताप सिंह की अगुवाई में बदरीनाथ से दिल्ली बोट क्लब तक पदयात्रा और संसद का घेराव का प्रयास हुआ। दिसम्बर में राष्ट्रपति को ज्ञापन देते समय १९ महिलाओं सहित ७१ लोगों को तिहाड भेजा गया जिन्हें १२ दिसम्बर को रिहा किया गया। वर्ष १९७९ को सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में उत्तराखण्ड राज्य परिषद का गठन हुआ। ३१ जनवरी को भारी वर्षा एवम कडाके की ठंड के बाबजूद दिल्ली में १५ हजार से भी अधिक लोगों ने पृथक राज्य के लिये मार्च किया। वर्ष १९७९ दिनांक २४-२५ जुलाई मंसूरी में पत्रकार द्वारिका पसाद उनियाल के नेतृत्व में पर्वतीय जन विकास सम्मेलन का आयोजन हुआ। इसी में उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना. सर्व श्री नित्यानन्द भट्ट, डी.डी. पंत, जगदीश कापडी, के.एन. उनियाल, ललित किशोर पांडे, बीर सिंह ठाकुर, हुकम सिंह पंवार, इन्द्रमणि बडोनी और देवेन्द्र सनवाल ने भाग लिया। सम्मेलन में यह राय बनी कि जब तक उत्तराखण्ड के लोग राजनीतिक संगठन के रूप एकजुट नहीं हो जाते, तब तक उत्तराखण्ड राज्य नहीं बन सकता अर्थात उनका शोषण जारी रहेगा। इसकी परिणिति उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना में हुई। वर्ष १९८० को उत्तराखण्ड क्रांति दल ने घोषणा की कि उत्तराखण्ड भारतीय संघ क एक शोषण बिहीन, वर्ग बिहीन और धर्म निर्पेक्ष राज्य होगा। वर्ष १९८२ को प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने मई में बद्रीनाथ मे उत्तराखण्ड क्रांति दल के प्रतिनिधि मंडल के साथ ४५ मिनट तक बातचीत की। वर्ष १९८३ दिनांक २० जून को राजधानी दिल्ली में चौधरी चरण सिंह ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उत्तराखण्ड राज्य की मांग राष्टहित में नही है। वर्ष १९८४ को भा.क.पा. की सहयोगी छात्र संगठन, आल इन्डिया स्टूडेंट्स फैडरेशन ने सितम्बर, अक्टूबर में पर्वतीय राज्य के मांग को लेकर गढवाल क्षेत्र मे ९०० कि.मी. लम्बी साईकिल यात्रा की। दिनांक २३ अप्रैल को नैनीताल में उक्रान्द ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नैनीताल आगमन पर पृथक राज्य के समर्थन में प्रदर्शन किया। वर्ष १९८७ को अटल बिहारी बाजपायी, भा.ज.पा. अध्यक्ष ने, उत्तराखण्ड राज्य मांग को पृथकवादी नाम दिया। वर्ष ९ अगस्त को बोट क्लब पर अखिल भारतीय प्रवासी उक्रांद द्वारा सांकेतिक भूख हडताल और प्रधान्मन्त्री को ज्ञापन दिया। इसी दिन आल इन्डिया मुस्लिम यूथ कांन्वेन्सन ने उत्तराखण्ड आन्दोलन को समर्थन दिया। दिनांक २३ नबम्बर को युवा नेता धीरेन्द्र प्रताप भदोला ने लोकसभा मे दर्शक दीर्घा में उत्तरखण्ड राज्य निर्माण के समर्थन में नारेबाजी की। वर्ष १९८८ दिनांक २३ फरवरी को राज्य आन्दोलन के दूसरे चरण में उक्रांद द्वारा असहयोग आन्दोलन एवम गिरपतारियां दी गयी।. दिनांक २१ जून को अल्मोडा में नये भारत में नया उत्तराखण्ड नारे के साथ उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी का गठन हुआ। वर्ष २३ अक्टूबरः को जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली में हिमालयन कार रैली का उत्तराखण्ड समर्थकों द्वारा बिरोध हुआ। पूलिस द्वारा लाठी चार्ज हुआ। दिनांक १७ नबम्बर को पिथौरागढ मे नारायण आक्षरम से देहरादून तक पैदल यात्रा निकाली गयी। वर्ष १९८९ में मुख्यमंत्री. मुलायम सिह यादव द्वारा उत्तराखण्ड को उ.प्र. का ताज बता कर अलग राज्य बनाने से साफ इन्कार कर दिया गया। वर्ष १९९० दिनांक १० अप्रैल को बोट क्लब पर उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति के तत्वाधान में भा.ज.पा. ने रैली आयोजित की। वर्ष १९९१ दिनांक ११ मार्चः को मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखण्ड राज्य मांग को पुनः खारिज किया। वर्ष १९९१ दिनांक ३० अगस्त को कांग्रेस नेताओं ने “ब्रहद उत्तराखण्ड“ राज्य बनाने की मांग की। वर्ष १९९१ को उ.प्र. भा.ज.पा. सरकार द्वारा पृथक राज्य संबंधी प्रस्ताव संस्तुति के साथ केन्द्र सरकार के पास भेजा। भा.ज.पा. ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी पृथक राज्य का वायदा किया, आखिरकार भाजपा को ही उत्तराखण्ड गठन का सौभाग्य मिला। इस समय उत्तराखण्ड में श्री विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य विकास की ओर अग्रसर है।
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